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Empowering Lives: The Badlav Story Part 1 (in Hindi)

विजय बहादुर भोला 10 साल की उम्र में लखनऊ में खो गए थे और भीख मांगने लगे थे। आज, 42 वर्षीय विजय गर्व से कहते हैं कि वह रिक्शा चालक के रूप में सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर रहे हैं और इसके लिए शरद जी श्रेय देते हैं।


शरद पटेल, जो उत्तर प्रदेश के मिर्जागंज से हैं, १६ साल की उम्र में, रेलवे स्टेशन, होटलों इत्यादि जागोह पर भिखारियों कि स्तिथि देख परेशान हुए। जब उन्होंने भिखारियों को नज़दीक से जा कर समज़ने की कोशिश करी तो ये जाना की, काफी भिकारी तो नशे की लत में रहते है। तब ही इस छोटे से लड़के ने इन भिखारियों को आत्मनिर्भर बनने और एक सम्मानजनक जीवन शैली अपनाने की लिए योजना बनायीं ।


भिखारियों की मदद करने हेतु जो संस्था शरद ने शुरू करी, वो आज एक संगठन के रूप में विकसित हो गयी है, और ये समाज के उस हिस्से को मज़बूत बना रही है जिसे देखने के बाद भी अनदेखा कर दिया जाता है । शरद पटेल इस NGO "बदलाव " के संस्थापक है । वो निरंतर इन वंचित लोगो को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में सक्रिय रूप से काम कर रहे है।


शरद कहते है, की बदलाव एक आंदोलन है, जिसके माध्यम से वह समाज को बदलना चाहते है जहाँ सभी के लिए एक समान जगह हो ।


#socialenterprisestories के #4th संस्करण में, हम Badlav (बदलाव) से आपको मिलाएंगे और इसके बारे में और जानेगे

 

लखनऊ शरद का पहला पड़ाव था, जहाँ उन्होंने पारिवारिक स्वास्थ्य संकट और एक मध्यम वर्गीय परिवार के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना किया। इससे लड़ने के लिए, और लोगों की मदद करने के लिए, शरद ने मेडिसिन का अध्ययन करना शुरू कर दिया है। हालांकि, कुछ महीनो में, उन्होंने ये अहसास हुआ कि वो मेडिसिन की पढाई के लिए नहीं बने है। स्नातक स्तर (ग्रेजुएशन) की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप के साथ सामाजिक विकास की यात्रा शुरू की। डॉ संदीप की लगन, ईमानदारी को देख शरद को बहुत प्रेरणा मिली, और शरद, आज भी अपनी कार्यशैली पर डॉ संदीप की सोच और सच्चाई की छाप महसूस करते हैं।


शरद मानते हैं की, उनकी रोज़मर्राह की ज़िन्दगी, और उसको बेहतर बनने की लगन ही "बदलाव" के स्तंम्भ हैं । कॉलेज से आते जाते मंदिरों और मस्जिदों के सामने भिखारियों को देख, कई सवाल उनके मन में उठते थे - जैसे गुरुद्वारों की तरह मंदिरों और मस्जिदों में भी लंगर क्यों नहीं बाटते! क्यों ये भिकारी नशे में रहते हैं, और असहाय रूप से पैसे की याचना करते रहते हैं?


एक दिन, उन्ही गलियों से गुजरते वक़्त शरद का सामना एक भिकारी से हुआ । जो की शरद से पैसे मांग रहा था, और ये बोल रहा था की उसने दो दिनों से कुछ नहीं खाया।


शरद इस असमंजस में थे की कहीं, अगर पैसे दिए और ये उसका गलत उपयोग तो नहीं करेगा! कुछ सोच कर, उन्होंने पास की दुकान से पूरी - कचोरी खरीद कर उस भिकारी को खिलाई।


कहने को तो ये बहुत आम बात हैं, पर ये बात शरद के जहन में बैठ गयी । वो निरंतर यही सोचते रहते की एक दिन तो उन्होंने तो एक भिखारी को खाना खिला दिया, पर क्या ये रोज़ संभव हैं? और ऐसे कितने सारे भिखारी हैं! इस बारे में उन्होंने अपने मित्रो से भी चर्चा करी, और कुछ ही दिनों में ये तय कर लिया की वो भिखारियों को आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन अर्जित करने के लिए प्रयास करेंगे ।


यहीं से "बदलाव" की यात्रा शुरू हुई।


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