जैसे-जैसे शरद का आंदोलन बढ़ता गया, उन्होंने महसूस किया कि अतिरिक्त संसाधनों और बाहरी समर्थन तक पहुँच होने से इस पहल को आगे बढ़ाने में और मदद मिलेगी। बदलाव के साथ काम करने वाले एक भिखारी के दुर्भाग्यपूर्ण निधन ने उन्हें बहुत दुखी किया, और ये दृढ़ निश्चय किया की बदलाव तो लाना ही हैं । अन्य संगठनों के साथ भागीदारी करके समर्थन इकट्ठा करने के लिए, शरद ने बदलाव को एक एनजीओ के रूप में पंजीकृत किया। उनका मानना है कि बदलाव केवल एक संगठन नहीं है, बल्कि यह एक 'आवाज' हैं , जो कि एक-एक करके भिखारियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा । शरद सोचते हैं कि भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए बदलाव को एक माध्यम के रूप में देखा जाए, जहां किसी को भीख ना मांगनी पड़े। संगठन को पंजीकृत करने से, उसे अधिक पूंजी जुटाने और बेहतर साझेदार बनाने के अवसर मिले । उन्होंने गूँज और मिलाप जैसे सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ कर, साझेदारी करना शुरू कर दिया।
2018 में, शरद ने यूएनबी इंडिया, जो की एक सामाजिक इनक्यूबेटर हैं , के साथ हस्ताक्षर किए। वहां, उन्हें अपना बिजनेस मॉडल विकसित करने की सलाह दी गई। हालांकि, वह यह सुनकर हैरान थे, क्योंकि वह नहीं जानता थे कि वह व्यवसाय कर रहे है। यूएनबी इंडिया द्वारा प्रदान किए गए समर्थन के साथ, उन्होंने समझा कि वह एक सामाजिक व्यवसाय चला रहे थे, और अपने मॉडल पर लगातार अधिक स्पष्टता प्राप्त की।
उन्हें यूएनबी इंडिया द्वारा गिवफंडस (Givfunds ) के बारे में पता चला। गिवफंड्स से पहले, उन्होंने पुनर्वास भिखारियों के लिए सूक्ष्म व्यवसाय स्थापित करने के लिए दान पर निर्भर थे, जिसके परिणामस्वरूप देरी हुई। गिवफंड्स से उधार ली गई धनराशि ने वहीँ काम आसानी से करने में सक्षम बनाया, क्योंकि उन्हें धन की व्यवस्था के लिए कम समय बिताना पड़ा, और वो भिखारियों के पुनर्वास के लिए अधिक समय दे पा रहे हैं । उनका कहना है कि गिवफंड्स द्वारा प्रदर्शित पूंजी का तेजी से संवितरण ने अत्यधिक विश्वास बनाए रखते हुए उच्च दक्षता सुनिश्चित की। आगे बढ़ते हुए, शरद लखनऊ के पड़ोसी शहरों में अपनी पहल का विस्तार करना चाहते हैं। उनका मानना है कि इस लक्ष्य को सफल बनाने के लिए गिवफंड्स की तत्परता और स्थिर विश्वास आवश्यक होगा।
शरद के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती संगठनात्मक विकास की है। भविष्य के लिए अपनी योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर, शरद बदलाव को दूसरे राज्यों में दोहराने के लिए लोगों को रोल मॉडल बनाने के लिए उत्सुक हैं। वह वर्तमान में कानपुर और रायपुर में साझेदारी कर रहे हैं, साथ ही साथ वहां के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ समन्वय भी कर रहे हैं।

बदलाव ने, शरद के परिप्रेक्ष्य में बहुत परिवर्तन लाया है, वो मानते हैं कि आज के युवाओं में इस आंदोलन का नेतृत्व करने की क्षमता है। साथ ही उनका मानना है कि, समाज द्वारा युवाओं के विचारों को दबा दी गया है। वह कहते हैं:
"युवा आजकल रेल का डिब्बा बन गया हैं, एक बंदा जहा चल लेता हैं, वहीँ पर साड़ी भीड़ चल लेती हैं । युवा को निश्चय लेना हैं की उनको रेल का इंजन बनना हैं , या उसका डिब्बा ही बने रहना हैं। "
