
हमारी #socialenterprisestories के सातवें संस्करण में, हम राहुल से उनकी अद्भुत सामाजिक उद्यमिता यात्रा के बारे में सुनेंगे और फसल की पैदावार में सुधार के लिए विभिन्न स्थायी समाधानों के बारे में भी सीखेंगे ।
राहुल भूमित्रालैब के संस्थापक (फॉउंडर) हैं। भूमित्रालैब एक सामाजिक उद्यम है, जो उपज और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए टिकाऊ उत्पादनो और समाधानों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। 27 साल की उम्र में ही, यह युवा चेंजमेकर अपने समुदाय और मातृभूमि के लिए एक बड़ा और बेहतर बदलाव ला रहा है। भूमित्रालैब को राष्ट्रीय स्तर पर "एग्रीकल्चर इनोवेशन अवार्ड - स्टार्टअप" से सम्मानित किया गया है, और राज्य स्तर पर, "सर्वश्रेष्ठ स्टार्टअप में से एक" के रूप में भी सम्मानित किया गया है। उनकी परियोजनाओं ने पहले ही हजारों लोगों की आजीविका को समृद्ध करके सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
राहुल सतपुते भारत के नागपुर जिले के सावनेर गांव के रहने वाले हैं। यह विदर्भ क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जो उन क्षेत्रों में से एक है जहां किसान आत्महत्या की दर बहुत ज्यादा है। इसमें वहां के लोग नहीं, बल्कि अनेक और विभिन्न चुनौतियाँ योगदान करती हैं जैसे कि अकाल, खराब फसल, कम फसल की कीमतें, मांग-आपूर्ति की चुनौतियाँ आदि। एक किसान परिवार से होने के कारण, राहुल ने इन कठिनाइयों का अनुभव कई लोगों के साथ किया है जिन्हें वह स्वयं जानते थे। अपनी सातवीं कक्षा में, उन्होंने फसल के प्रकारों के बारे में सीखा, जिसे मिट्टी और पर्यावरण के प्रकार के अनुसार उगाया जा सकता है। इसके माध्यम से, उन्हे यह समझ आया कि फसल के लिए कम कीमत मिलने का सबसे प्रमुख कारण है फसल की मांग-आपूर्ति की प्रणाली को समझ कर उसके अनुसार खेती करना । उन्होंने अपनी हाई स्कूल (दसवीं कक्षा) पूरी करते -करते, खेती से लेकर फसल काटने का पूरा चक्र, के बारे में आवश्यक ज्ञान अर्जित कर लिया।
अपने वरिष्ठ हाई स्कूल अध्ययन (XI - XII कक्षा ) के दौरान, उन्होंने एक छोटी सी दुकान शुरू की, जहाँ वो सस्ती दरों पर खेती के लिए बुनियादी आवश्यकताएं उपलब्ध कराते थे । इसके साथ ही उन्होंने और उनके परिवार ने खेती की पारंपरिक प्रथाओं के बारे में पढ़ाना और जागरूकता फैलाना शुरू किया। परिवर्तन लाने के इस उत्साह ने उन्हें इस विषय पर और नए -नए तकनीकों और प्रौद्योगिकी के बारे में पढ़ने के लिए प्रेरित किया , जिसके करते उन्होंने " बायोटेक्नोलॉजी" डिग्री में दाखिला लिया । कॉलेज में उनका पहला वर्ष सुचारू रूप से चल रहा था और वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित तो कर रहे थे, पर घर पर उनकी वित्तीय स्थिति धीरे-धीरे कमज़ोर हो रही थी। अपने कॉलेज के दूसरे वर्ष के दौरान घर पर आर्थिक तनाव का सामना करने के अलावा, उनकी माँ का भी निधन हो गया।
इन चुनौतियों के बावजूद, उनकी लगन, जिंदादिली और उनके परिवार एवं गांव में खुशियां लाने के जुनून ने उन्हें अपने मार्ग पर डटे रखा । परिवार के सहयोग से, उन्होंने दुकान का प्रबंधन जारी रखा और इसकी कमाई का इस्तेमाल स्वयं की शिक्षा के लिए किया। अपने तीसरे वर्ष के दौरान, वह यह समझ चुके थे कि एक कृषि-चक्र के दौरान, उर्वरक (फ़र्टिलाइज़र) में सबसे ज्यादा निवेश लगता है। इसलिए उनकी अंतिम वर्ष की शोध परियोजना (रिसर्च प्रोजेक्ट) "गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र" (राष्ट्रीय संस्थान है, जो की जैविक खेती, और विशेष रूप से भारतीय गाय और पारंपिक तरीको से मिट्टी पुनर्जीवित कर्म खेती को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करता है ) के साथ गौ -गोबर आधारित उर्वरक पर आधारित थी। उनके शोध को अमेरिका में पेटेंट भी मिला और उनका यह पेपर विश्व स्तर पर प्रकाशित हुआ।
कॉलेज की पढ़ाई के बाद, उन्होंने राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) में स्नातक प्रशिक्षु (ग्रेजुएट ट्रेनी) के रूप में पार्ट-टाइम नौकरी की। यहाँ उन्होंने कई फसलों, मिट्टी के प्रकारों और कम लागत वाली जैव-उर्वरक अवधारणा के विकास पर शोध किया। यहाँ उन्होंने दो जैविक आधारित उर्वरक विकसित किए - जो अब तो पूरे भारत में व्यापक रूप से उपयोग किए जा रहे हैं।
उनके काम को अंततः राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और वे जैविक खेती के औपचारिक सलाहकार बन गए। उन्होंने ऑर्गेनिक प्रोजेक्ट मैनेजर विशेषज्ञ के रूप में काम करना शुरू किया और अनेक किसानों और छात्रों के साथ काम किया। हालाँकि, काम करते हुए उन्हें ऐसा लगा, की अगर वो स्वयं से कुछ शुरू करे तो इस ज्ञान के प्रचार - प्रसार को वो और तेजी से बढ़ा सकेंगे। इस निर्णय के मार्ग पर अग्रसर हो, 2018 में, भूमित्रा लैबोरेट्रीज की स्थापना हो गयी ।